Anurag Kashyap's First Movie - Last Train To Mahakali





You were so confused about his first movie (weren't you?). Gulal, Paanch, Black Friday ? (For some it was Dev D as they could  not reach torrents). I am not going to confuse you even more. 

Today we present you "Last Train To Mahakali" - Anurag Kashyap's first movie as a director (short film to be precise) and Kay Kay's second movie. You might like to call it his first movie where he played the lead and was recognized too. His first movie was Naseem which becomes special for being the only screen role of great Urdu poet Kaifi Azmi

Last Train To Mahakali also stars Nivedita Bhattacharya (who is Kay Kay's wife). 

Kay Kay and Nivedita
Year 1999 was a special year for Kashyap as he won the Best Screenplay award for Satya at the Star Screen Awards and this movie was also released, for which he later won the Special Jury Award at the same award function. 

I would not say that the movie is too-brilliant and wonderful but it is surely a 'nicy-nice' movie, and if you consider the fact that it was shot in 4 days with a budget of just 2 Lakhs and it brought the nice league of Anurag Kashyap, K.K.Menon as well as Nivedita into limelight, you must go for it. 

While I was researching about the movie, I came across this very old interview of Anurag about this movie and I am copy pasting a part of it, hoping that you would love it - 

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"मेरी शुरूआत हुई 'लास्ट ट्रेन टू महाकाली' से। 'लास्ट ट्रेन टू महाकाली' मैंने निराशा में बनायी। गुस्सा भी था कि यार मुझे कोई बनाने नहीं दे रहा है। एक बात मुझे समझ में आ गई थी कि यहां का जो निर्माता है, जो पैसे वाला आदमी है, जो पूंजीवादी है, उसको लगता है कि निर्देशक का काम है कैमरा लगाना। बाकी कोई इसका काम नहीं है। तो मैंने इसी चीज के लिए तय किया कि मैं कैमरा लगा कर दिखाऊंगा। मेरे पास कोई ज्ञान नहीं था। उस समय सबसे बड़ी मदद मिली स्टार बेस्ट सेलर से। स्टार टीवी पर तब यह सीरिज चल रहा था। उस समय मेरा भाई अभिनव 'डर' नाम का सीरियल बना रहा था। उसमें उसने मेरे नाम का इस्तेमाल किया था। जब उसने मेरा नाम का इस्तेमाल किया तो मुझे पता चला कि कुछ तो है स्टैंडिंग है मेरी। मैंने कहा था भाई से कि क्या जरूरत है? भाई ने बोला कि नहीं अपना नाम दे दो तो सीरियल हो जाएगा। मैंने बोला कि अच्छा… उसने बताया कि बदले में पैसे मिलेंगे। कितने चाहिए? मैंने बड़े जोश मे आकर दस हजार रुपए मांग लिए। उन्होंने बड़ी आसानी से दे दिए। जब सीरियल चालू हुआ तो उन्होंने सीरियल का प्रोमोशन चालू किया । 'सत्या', 'शूल' और 'कौन' के लेखक का सीरियल… मुझे बहुत तकलीफ होती थी। मैं भाई को डांटता था कि तुम मेरा नाम ऐसे क्यों डाल रहे हो। मेरा भाई बोलता था कि आपके अंदर कांफीडेंस नहीं है। मैंने खुद फोन कर-कर के स्टार बेस्ट सेलर को बोला कि मेरा नाम हटाओ। लेकिन उस प्रक्रिया में मुझे रियलाइज हुआ कि मैं कुछ हूं। सब हमको बोले तुम बेवकूफ है। तेरे नाम पर प्रोमोट हो रही है चीज। तू मना क्यों कर रहा है? मैंने बोला कि शर्म आती है। उन्होंने बोला कि चूतिया आदमी है। इससे तुम्हें मालूम है कि तुम्हारी कितनी स्टैंडिंग है। मैंने कहा अच्छा। उन्होंने समझाया कि तुम जाओ स्टार प्लस । तुम जो बोलेगे, वे करने के लिए दे देंगे। मैंने कहा अच्छा। उन्हें जाकर मैंने एक कहानी सुनाई। उन्होंने तुरंत स्वीकृत कर दिया। बिना जाने और देखे कि डायरेक्टर के तौर पर मेरे अंदर क्या संभावनाएं हैं? मैंने लिखी है तीन फिल्में। तब मुझे लगा यार किया जा सकता है। फिर मेरे समझ में आने लगा कि पूरा ध्यान लगा के कुछ किया जाए। इसमें कैमरा लगा के दिखाया। नटी का काम मुझे बहुत अच्छा लगा था। उसने 'अब के सावन झूम के बरसो… धूम पिचक वीडियो मैंने देखा। नटी से मेरी बात हुई दिल्ली में। नटी 'सत्या' का फैन था। नटी मुंबई आ गया। मैंने कहा करते हैं कुछ, लेकिन शूटिंग के एक दिन पहले मेरी जान निकल गई। मैंने कहा करूंगा कैसे? मैंने आज तक किया नहीं। मैंने शिवम को रात के बारह बजे फोन किया। मैंने कहा सर कल शूटिंग है। उन्होंने बोला कि हां कर। शिवम ने कहा कि पागल है, तेरा दिमाग खराब है। जो तुम ने तय किया वही जाकर कर। उन्होंने मुझे रात भर समझाया, जा कर, डर मत। तुमने हाथ डाल दिया। अगले दिन सेट पर गया तो, सुबह-सुबह शिवम ने कहा कि मैं भी आता हूं। मैं वेट कर रहा हूं कि शिवम कब आएंगे। नौ बजे का शिफ्ट था। राजेश टिबरीवाल मेरा दोस्त मेरे साथ था। डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी के सहयोगी यशवंत शेखावत मेरे साथ थे। यशवंत मेरे को बोल रहा है कि ऐसे करते हैं। राजेश ने भी एक सीरियल बनाया हुआ था। उसने भी कहा कि ऐसे करते हैं। मैं कंफ्यूज… मैं उन दोनों की तरह से नहीं सोच रहा था। फिर नटी ने पूछा कि करना क्या है। मैंने कहा,नटी सीन तो ये है। अब इसको कैसे करना है। मैंने बोला कि मैं इतना बता देता हूं कि कौन कहां बैठा है और क्या कर रहा है। मैंने सीन स्टेज करना चालू किया। नटी ने कहा कहां से शुरू करेंगे। पहला सीन था लडक़ी से बात हो रही है। उसको लेकर आया जा रहा है। मैंने कहा इसको लेकर आते हैं। मैंने कहा कि नटी ऐसा नहीं हो सकता है कि यहां से ये भी दिखे और वो भी दिखे। नटी ने कहा क्यों नहीं हो सकता है। तो नटी ने कैमरा लगाया। फिर धीरे-धीरे जो मेरा पहला सीन था… उसे शूट करने में मैंने फिगर आउट किया अपने-आप। पहला सीन करने में मुझे साढ़ सात घंटे लगे। उस समय मैंने फिगर आउट किया कि फिल्म बनाने का कोई मेथड नहीं है । जो मेथड है, वो आपका मेथड है। आप जैसे फिल्म को अपने दिमाग में देख रहे हो, वैसे ही बना दो। मेरा यह था कि मैं अपने-आप को एक्सप्रेस कर पाता हूं। मेरा विजुअल माइंड है। मैं विजुअली देखता हूं इन चीजों को। उसको आप कैसे एक्सप्रेस कर पाते हो अपनी टीम को।"

(this excerpt is copied from Chavanni Chap)
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